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मिल्‍खा सिंह... महान उपलब्धियां, एक प्रेरणादायक आदर्श छोड़ गए 'फ्लाइंग सिख'

General V.K. Singh

नई दिल्‍ली 19 Jun, 2021 06:29 pm

सोचिये आप 17 वर्ष की आयु में अपने परिवार का निर्मम संहार देखते हैं. किसी तरह भाग कर जान बचाते हैं और लाशों से भरी हुई ट्रेन में छिप कर उस देश की सीमा पार करते हैं जो कभी आपके खुद का था. निर्धन, भूखे, बेघर, आप अब ऐसे देश में हैं जो आज़ादी की पहली साँस ले रहा है और समस्याओं की कोई कमी नहीं.

मिल्खा सिंह के जीवन की यह शुरुआत थी. पर उन्होंने निश्चय किया कि उनकी शुरुआत यह निर्धारित नहीं करेगी कि उनका शेष जीवन कैसा होगा.

मिल्खा सिंह भारतीय सेना में भर्ती हुए और इस तरह भारत के श्रेष्ठतम खिलाड़ियों में से एक का करियर शुरू हुआ. उनकी विशेष बात यह थी कि उन्होंने कभी पुरस्कार या पदक के लिए मेहनत नहीं की. उन्होंने स्वयं से प्रतिस्पर्धा की. खुद के बनाये हुए रिकार्ड्स में से कुछ सेकंड कम करने का जज़्बा उन्हें बहुत आगे ले गया. इसका परिणाम यह हुआ कि 1956 के राष्ट्रीय खेलों में 200 और 400 मीटर में उन्हें स्वर्ण पदक मिला. 1958 में कीर्तिमान ध्वस्त किये. 1960 में 400 मीटर में 46.1 सेकंड का समय निकाला जो विश्वस्तरीय था.

1958 में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक मिला पर ओलंपिक्स में मात्र 0.1 सेकंड से वे पदक से वंचित रह गए. 1962 में पाकिस्तान के प्रख्यात धावक अब्दुल खालिक को हरा कर उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से 'फ्लाइंग सिख' की उपाधि अर्जित की. उन्हें अर्जुन अवार्ड और पद्म श्री से भी अलंकृत किया गया.

अपनी पत्नी को कुछ दिन पहले खोने के बाद 91 वर्षीय मिल्खा सिंह ने अपनी अंतिम साँस ली और आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी महान उपलब्धियाँ और एक प्रेरणादायक आदर्श छोड़ गए. 

उनकी आत्मकथा का अंतिम पृष्ट आप सब के लिए यहाँ साझा कर रहा हूँ. 

What would you do if at the age of 17, you see your family being hacked to death, running for your life, hiding amongst corpses on a train which takes you beyond the borders of a country which was no longer yours. Poor, hungry and homeless, you find yourself in a country which was taking her first steps as an independent nation, and had massive problems of her own.

That is how Milkha Singh started. But he decided that this start will not decide how he would live the rest of his life.

Milkha Singh joined the army and so the career started of the one of the best athletes that this country has produced. The outstanding trait of Milkha was that he worked tirelessly not for medals or awards, but to best himself, constantly looking to shave a fraction of a second off his time. The results are as follows:

He won in 200m and 400m events at National Games 1956. In 1958 games, he broke the existing records. In 1960, he timed 46.1 seconds in 400 m, which was considered to be a world class performance of that time. He won gold in both events at the Asian Games in 1958. His dream run at the Asian Games and Olympic qualification catapulted him to iconic status. His 400 meters national record stood for 38 years! Milkha lost by a mere 0.1 seconds, the closest brush for an Indian athlete with the Olympic medal till date. In 1962, Milkha Singh defeated Pakistani runner Abdul Khaliq. It was then that the Pakistan’s President Ayub Khan named him the ‘Flying Sikh’. He was bestowed upon the Arjuna Award and, Padma Shri in 1958.

At 91, Milkha breathed his last after losing his wife some days back. He left behind a legacy and athletic achievements which will continue to inspire and motivate generations to come.

I am sharing the last page of his autobiography with you all.

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