
मार्क कार्नी, जो एक अर्थशास्त्री और केंद्रीय बैंकिंग जगत के वरिष्ठ नेता के रूप में विख्यात हैं, अब कनाडा की राजनीति में एक निर्णायक शक्ति बनकर उभरे हैं। उनकी हालिया चुनावी जीत और उदारवादी पार्टी में प्रभावी भूमिका ने वैश्विक राजनीति, खासकर भारत-कनाडा संबंधों की दिशा को लेकर अनेक प्रश्न खड़े कर दिए हैं। भारत के लिए यह एक ऐसा क्षण है जो अवसरों और चुनौतियों दोनों से परिपूर्ण है।
1. कनाडा की विदेश नीति में संभावित बदलाव
कार्नी की पृष्ठभूमि बैंक ऑफ कनाडा और बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर के रूप में रही है, और उनकी सोच वैश्विक पूंजीवाद के साथ-साथ पर्यावरणीय स्थिरता पर केंद्रित रही है। यह संभावना बनती है कि वह प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की तुलना में अधिक संतुलित और व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाएंगे। भारत के लिए यह सकारात्मक हो सकता है, क्योंकि हाल के वर्षों में भारत-कनाडा संबंध खालिस्तानी अलगाववाद, कूटनीतिक बयानबाज़ी और व्यापारिक गतिरोध के कारण तनावपूर्ण रहे हैं।
कार्नी यदि ट्रूडो को हटाकर प्रधानमंत्री बनते हैं, या विदेश नीति पर अधिक प्रभावी भूमिका निभाते हैं, तो वे भारत के साथ जुड़ाव को रणनीतिक दृष्टि से देख सकते हैं, न कि केवल घरेलू राजनीतिक हितों की दृष्टि से।
Thank you, Canada.
— Mark Carney (@MarkJCarney) April 29, 2025
Our strength lies in our resolve to work together. United, we will build Canada strong. pic.twitter.com/uN6h4LUAEP
2. व्यापार और निवेश: संबंधों में सुधार की संभावनाएँ
मार्क कार्नी को वैश्विक वित्तीय नीति का विशेषज्ञ माना जाता है। वे जलवायु परिवर्तन, ग्रीन इन्वेस्टमेंट और वैश्विक आर्थिक सहयोग पर बल देते हैं। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह सहयोग का द्वार खोल सकता है। कनाडा की कंपनियाँ भारतीय ग्रीन एनर्जी, फिनटेक, और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश कर सकती हैं। साथ ही, भारत-कनाडा मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वर्षों से लंबित वार्ता को एक नई दिशा मिल सकती है।
कार्नी की जीत से यह आशा की जा सकती है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिरोधों को सुलझाने और निवेश को बढ़ावा देने पर बल दिया जाएगा।
3. खालिस्तानी मुद्दे पर सख़्त रुख़ की उम्मीद?
भारत-कनाडा संबंधों में सबसे संवेदनशील मुद्दा खालिस्तानी गतिविधियों का है। जस्टिन ट्रूडो की सरकार को भारत बार-बार यह आरोप लगाती रही है कि कनाडा खालिस्तानी समूहों को अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सह दे रहा है। कार्नी की छवि एक व्यावहारिक और सुदृढ़ नीति निर्माता की है। यदि वे इस विषय को सुरक्षा और कूटनीतिक दृष्टिकोण से देखें, तो भारत को अपेक्षित सहयोग मिल सकता है।
हालांकि, कनाडा की बहुसांस्कृतिक राजनीति में यह मुद्दा संवेदनशील रहेगा, और कार्नी को बहुत संतुलन के साथ इस पर निर्णय लेने होंगे।
4. इंडो-पैसिफिक रणनीति में सहयोग की संभावना
भारत और कनाडा दोनों इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर चिंतित हैं। कार्नी वैश्विक कूटनीति में अमेरिका और यूरोपीय संघ के निकट माने जाते हैं, और भारत के साथ सामरिक तालमेल बढ़ाने की संभावना है। इंडो-पैसिफिक में एक साझा रणनीति भारत-कनाडा संबंधों को रक्षा, तकनीक और साइबर सुरक्षा के स्तर पर मजबूत कर सकती है।
5. भारतीय प्रवासी और शिक्षा संबंध
कनाडा में भारतीय प्रवासी समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है और शिक्षा, रोजगार व आव्रजन नीतियाँ भारत के युवाओं को प्रभावित करती हैं। कार्नी यदि आव्रजन नीतियों में सुधार लाते हैं, तो भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए अवसर बढ़ सकते हैं। भारत की उच्च शिक्षा संस्थाओं और कनाडा की यूनिवर्सिटीज के बीच सहयोग भी गति पकड़ सकता है।
मार्क कार्नी की जीत भारत के लिए एक नया अवसर लेकर आई है। यह संबंधों में सुधार की संभावनाओं से परिपूर्ण है, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। भारत को अब कनाडा के साथ अपनी नीति को "प्रतीक्षा और अवलोकन" के स्थान पर "संवाद और साझेदारी" की ओर ले जाना चाहिए। यदि कार्नी अपने वैश्विक दृष्टिकोण के साथ संतुलित और समझौतावादी रुख अपनाते हैं, तो भारत-कनाडा संबंध एक नए युग में प्रवेश कर सकते हैं।
Leave Your Comment